Alone एक दफ्तर का बाबू वह सोच रहा है दफ्तर में बैठे, की एक दिन की छुट्टी मिली तो , जो ये काम छूटा है उसे पूरा करूंगा, पहले छुट्टियों का इंतजार करता था, अब मिली तो परेशान हैं, पहले बच्चों की हंसी देखने के लिए तरसता था, आज हंसी देखी भी तो, सोच में हैं, कि इसे बरकरार कैसे रखूं। पहले बंद कमरा हो, और शांति में बैठने का दिल करता था, आज वही शोर याद आता है। पहले रोटी फेंकी जाती थी , तो खामोश रहता था, अाज रोटी फेंकी जाए तो बौखला उठता है। बरसों छत पर नहीं गया, ठीक से एक बार, आज पूरे परिवार के साथ बैठता है छत पर। बच्चों के खिलौने जी भर के नहीं देखे, आज बच्चों के साथ खेल, अपना मन बहला रहा है। हर महिने पगार पाने वाला, अब पड़ा है फोन पे और ओनलाइन बैंकिंग के चक्करों में। कुछ ऐसे बिता रहा है दिन वो, एक दफ्तर का बाबू, जो गालियां देता था सरकार को छुट्टियों के लिए, अब रू-ब-रू हो गया है, सरकार छुट्टी क्यों नहीं देती थी। असमंजस में हैं वो दफ्तर का बाबू कुछ हैरान, कुछ परेशान। स्वरचित कविता तेजस्विनी ❣️🖋️ #lockdown एक दफ्तर का बाबू #situation #Waqt✍️💯