"क़फ़स है, पर कतर बैठें हों" ये जो भरम पाल बैठें हों ख़ूद पे ज़ुल्म कर बैठें हों दलीलें रखो चाहे जितनी क़फ़स है, पर कतर बैठें हों सोने मे रखें चमकते निवाले बेसाखियों पे टिकी बुलन्दीयां तिलिस्म तुम्हें जागने नहीं देता सताए रहता ख़्वाब टुटने का डर ओ निंद के क़ैदी, निंद तुम्हारी नहीं असमर्थ हो देखने नित नई रोशनी अपने सामर्थ्य से हाथ धो बैठे हों क़फ़स है, पर कतर बैठें हों ✍️ विशालकुमार "विशाल" ©Vishal kumar "Vishal" क़फ़स है, पर कतर बैठें हों ! #Mic Adv Rakesh Kumar Soni Sudha Tripathi VAniya writer *