जंगल के जंगल मकान हुए जाते है, एक एक करके शहर वीरान हुए जाते है। हम उनसे जख्मों का इज़हार कैसे करते, जो मेरे तेज़ साँसों से परेशान हुए जाते है। रेत की सीपियां मिलने लगी है पानी में, क्या दरिया भी अब रेगिस्तान हुए जाते है। चलते चलते गाँव से शहर आ गए है हम, रौशन बहुत है फिर भी बयाबान हुए जाते है। तिश्नगी फ़ैली है इस कदर ज़माने में अब, आँखें बंद करके अंज़ाम से अंजान हुए जाते है। चलते चलते(ग़ज़ल) #कोराकाग़ज़ #collabwithकोराकाग़ज़ #रमज़ान_कोराकाग़ज़ #kkr2021 #kkचलतेचलते #yqdidi