यूं तो कुछ बाकी नहीं कसर, असर होने में। देर नहीं लगती , बर्बादी की खबर होने में।। कोई हद नहीं हमारी कारगुज़ारियों का। हर सिला पे गुमां हैं बशर, फकर होने में।। महजूरी न हयात में,हो तो बस खालिक़ की। उमर है मामूली सी,की गुजर है पहर होने में।। अहद-ए-जुबां अच्छा है शहद सा होना वरना। महदूद नहींं आदमी बातों-बातों पर जहर होने में।। मुंसिफ क्या तय करेगा गुनाह सिवा रहबर के। मुगालते में है जग सारा,उसपर नजर होने में।। ऐ नूर-ए-इलाही हम तो सिर्फ इक वादी है। अक्सर वक्त जाया कर देते हैं दर-बदर होने में।। हमको मालूम है दस्तूर हर गुल-ए-ख़्वाब का फिर भी मीनारें बना लेते है, खत्म सफर होने में ©।।फक्कड़।। #fakkad #leaf