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"कश्मकश" तेरी वो क़ातिलाना निगाहें मुझे ही घूरती है

"कश्मकश"
तेरी वो क़ातिलाना निगाहें मुझे ही घूरती है।
कॉलेज ग्राउंड से ले कर कैंटीन तक मुझे ही ढूंढती है।
प्यार नही हैं तुमसे जब से ये कह बैठा हूँ।
तब से लोगों की भीड़ में भी तन्हा रहता हूँ।
कही न कही कुछ तो बेबशी सी है।
सामने हो कर भी बड़ी खामोशी सी है।
यू जो सामने आकर कुछ दूर खड़ी होकर देखती हो।
हो सकता हैं शायद मुझको ही चाहती हो।
विवेक सिंह राजावत।
एक दोस्त के लिए।
 शर्मा जी के लिए।खन्ना के वास्ते।
"कश्मकश"
तेरी वो क़ातिलाना निगाहें मुझे ही घूरती है।
कॉलेज ग्राउंड से ले कर कैंटीन तक मुझे ही ढूंढती है।
प्यार नही हैं तुमसे जब से ये कह बैठा हूँ।
तब से लोगों की भीड़ में भी तन्हा रहता हूँ।
कही न कही कुछ तो बेबशी सी है।
सामने हो कर भी बड़ी खामोशी सी है।
यू जो सामने आकर कुछ दूर खड़ी होकर देखती हो।
हो सकता हैं शायद मुझको ही चाहती हो।
विवेक सिंह राजावत।
एक दोस्त के लिए।
 शर्मा जी के लिए।खन्ना के वास्ते।