गजगामिनि तुम मधुयामिनि में मेरे काम की ज्वाला में धूम्र प्यार का मुखर कराती आहुति सी छा जाती हो । मृगनयनी यह प्यार हमारा कई जनम का प्रतिफल है कहां चलें हम सहमे सहमे विरहन कारा सब निष्फल है अंकशायिनी , भुजबाहों में मोम सदृश तुम पिघल पिघल कर अमृतमयी रसधार बहा दो क्रमिक प्यार की मधु आशा में ।