गजल मेरी आंखों मे थकन साफ साफ देख रातों की सारी जगन साफ साफ देख चहरा उतर कर बोझल सा हो चुका है दिल रोता है ये दुखन साफ साफ देख मिट्टी से मरकर भी रिश्ता नही तोड़ा मेरी चाह और लगन साफ साफ देख कितने उजले कपड़े पहने हुए हूँ आज मेरा दूर से भी कफन साफ साफ देख नफरतों की सुलगती,जलती आगों मे तपनेवालों की तपन साफ साफ देख नई फसल मे कोई खसारा नही है अब मुहब्बतों का ये चमन साफ साफ देख मारुफ आलम ©मारुफ आलम जगन साफ साफ देख #farmersprotest