अरुण यह मधुमय देश हमारा। जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।। सरल तामरस गर्भ विभा पर, नाच रही तरुशिखा मनोहर। छिटका जीवन हरियाली पर, मंगल कुंकुम सारा।। लघु सुरधनु से पंख पसारे, शीतल मलय समीर सहारे। उड़ते खग जिस ओर मुँह किए, समझ नीड़ निज प्यारा।। बरसाती आँखों के बादल, बनते जहाँ भरे करुणा जल। लहरें टकरातीं अनन्त की, पाकर जहाँ किनारा।। हेम कुम्भ ले उषा सवेरे, भरती ढुलकाती सुख मेरे। मंदिर ऊँघते रहते जब, जगकर रजनी भर तारा।। Third party image reference Third party image reference बाजे अस्तोदय की वीणा--क्षण-क्षण गगनांगण में रे। हुआ प्रभात छिप गए तारे, संध्या हुई भानु भी हारे, यह उत्थान पतन है व्यापक प्रति कण-कण में रे॥ ह्रास-विकास विलोक इंदु में, बिंदु सिन्धु में सिन्धु बिंदु में, कुछ भी है थिर नहीं जगत के संघर्षण में रे॥ Third party image reference Third party image reference ऐसी ही गति तेरी होगी, निश्चित है क्यों देरी होगी, गाफ़िल तू क्यों है विनाश के आकर्षण में रे॥ निश्चय करके फिर न ठहर तू, तन रहते प्रण पूरण कर तू, विजयी बनकर क्यों न रहे तू जीवन-रण में रे?