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इत्तु सा_-` मुझे पिंजरे में कैद करो,मैं उड़ना नहीं

इत्तु सा_-` मुझे पिंजरे में कैद करो,मैं उड़ना नहीं चाहता। मैं इत्तु सा पंछी ठहरा ,जिसे हवाओं ने ठुकराया।
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 #NojotoQuote इत्तु सा पैग़ाम पिंजरे के नाम।
#nojoto #story #poet #poetry #poem #kavita #love #kahani #hindi #nojotohindi #motivation 

मुझे पिंजरे में कैद करो,मैं उड़ना नहीं चाहता। मैं इत्तु सा पंछी ठहरा ,जिसे हवाओं ने ठुकराया। निकला बाहर पिंजरे से तो दिखते  मेरे यार, लाख मन्नतें करता मैं तो मिलना नहीं इक़ बार। चलाओ मुझे अंगारों पे, मैं अंगारों पर चलना चाहूं।  चलते चलते अंगारों पर...मैं अंगारों से भिड़ जाऊँ। समझ के मिट्टी पैरों तले हर पर  रौंदा तुमनें, झूठा.. पागल..काफ़िर आशिक़..ना जाने क्या क्या बोला तुमने? सब कुछ भूलना चाहता मैंने.. नाम भी याद ना रखना। भूलकर सारे रास्ते, अब तो घर भी याद नहीं रखना। रास्ते सारे बन्द पड़े बस रास्ता इक ढूंढना , क़ब्र में अपनी ख़ुद ही खोदता... ख़ुद को दफ़न करा। बुलाना मत उसको जब भी मौत मेरी आये,मरे हुए को फ़िर ना मारे.. जब साया पास आये। बस यहीं मेरी क़िस्मत ठहरी, अब यूँ ही मुझे जीना। मैं पिंजरे का पंछी ठहरा,मुझे पिंजरे में ही रहना। समझ के अब तो समझ में आया, हुआ मैं काफ़िर अब तो...सब कुछ मैंने छोड़ा। ख़ुद को ख़ुद में ढूंढ अब तो,ख़ुद को मैंने जाना..खुद को बदला ख़ुद की ख़ातिर... ख़ुद को मैंने सवार। तोड़ के पिंजरे ख़ुद को पाया, पिंजरे से सब कुछ सीखा। कर जाऊँगा ऐसा अब तो... याद रखेगा जमाना। मैं इत्तु सा पंछी ठहरा,हवाओं ने मुझे सराहा।
©@j_$tyle
इत्तु सा_-` मुझे पिंजरे में कैद करो,मैं उड़ना नहीं चाहता। मैं इत्तु सा पंछी ठहरा ,जिसे हवाओं ने ठुकराया।
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 #NojotoQuote इत्तु सा पैग़ाम पिंजरे के नाम।
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मुझे पिंजरे में कैद करो,मैं उड़ना नहीं चाहता। मैं इत्तु सा पंछी ठहरा ,जिसे हवाओं ने ठुकराया। निकला बाहर पिंजरे से तो दिखते  मेरे यार, लाख मन्नतें करता मैं तो मिलना नहीं इक़ बार। चलाओ मुझे अंगारों पे, मैं अंगारों पर चलना चाहूं।  चलते चलते अंगारों पर...मैं अंगारों से भिड़ जाऊँ। समझ के मिट्टी पैरों तले हर पर  रौंदा तुमनें, झूठा.. पागल..काफ़िर आशिक़..ना जाने क्या क्या बोला तुमने? सब कुछ भूलना चाहता मैंने.. नाम भी याद ना रखना। भूलकर सारे रास्ते, अब तो घर भी याद नहीं रखना। रास्ते सारे बन्द पड़े बस रास्ता इक ढूंढना , क़ब्र में अपनी ख़ुद ही खोदता... ख़ुद को दफ़न करा। बुलाना मत उसको जब भी मौत मेरी आये,मरे हुए को फ़िर ना मारे.. जब साया पास आये। बस यहीं मेरी क़िस्मत ठहरी, अब यूँ ही मुझे जीना। मैं पिंजरे का पंछी ठहरा,मुझे पिंजरे में ही रहना। समझ के अब तो समझ में आया, हुआ मैं काफ़िर अब तो...सब कुछ मैंने छोड़ा। ख़ुद को ख़ुद में ढूंढ अब तो,ख़ुद को मैंने जाना..खुद को बदला ख़ुद की ख़ातिर... ख़ुद को मैंने सवार। तोड़ के पिंजरे ख़ुद को पाया, पिंजरे से सब कुछ सीखा। कर जाऊँगा ऐसा अब तो... याद रखेगा जमाना। मैं इत्तु सा पंछी ठहरा,हवाओं ने मुझे सराहा।
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