آرزو ہے کہ کبھی میں بھی مدینہ دیکھوں दिल मे इश्क़ ऐ मोहम्मद नही है अगर कलमा सुनने सुनाने से क्या फायदा क़ल्ब में सोके तैबा नही है अगर मक्के में आने जाने से क्या फायदा खुश्क सजदे किये खूब माथा घिसा ओर पेशानी पे दागे सज़दा बना क़ल्ब नामे मोहम्मद से खाली रहा यूँही माथा घिसाने से क्या फायदा हुब्बे अहमद की तब्लीक तूने न कि कट गई उम्र गुस्ताकियो में तेरी नक्स ढूंढना अगर काम है तेरा यूँही बिस्तर उठाने से क्या फायदा ©mohammad waseem razaa लब्बेक या रसूल अल्लाह #Madeena