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"मिस्ड कॉल" (Missed Call) करण हक्का-बक्का 

       "मिस्ड कॉल" (Missed Call) 
करण हक्का-बक्का रह गया और फूटफूटकर
रोने लगाI
उसके सारे दोस्त उसके पास आकर उससे पूछने लगे- "करण क्या हुआ? सब ठीक तो है?"

करण बस अपने मोबाइल को देखता रह गयाI
कॉल लॉग पर सुबह का वो माँ का आठ बजे वाला
"मिस्ड कॉल" अभी भी दिख रहा था उसे!

पूरी कहानी CAPTION में पढ़ें.............................. करण काफ़ी मेहनती लड़का थाI चार साल की "B.E" डिग्री के बाद "कैंपस प्लेसमेंट" के जरिए उसकी एक "MNC" में नौकरी लगी थीI दार्जीलिंग के एक छोटे से जिले का एक छोटा सा गाँव का लड़का आज "बेंगलुरु" जैसे बड़े शहर में अपना भविष्य बनाने की और एक कदम आगे बढ़ चूका था, जाहिर सी बात है- उसके माता-पिता बहुत खुश थे और गर्व के साथ अपने आस-पड़ोस के लोगों को मौका मिलते ही ये बात सुनाने से नहीं चूकते थेI
करण के पिताजी ने चौकीदारी का काम करके काफ़ी कष्ट उठाकर बेटे का बेंगलुरु जाके इंजीनियरिंग करने का सपना पूरा किया था!

वक़्त गुजरता गया और दो साल बीत गएI अब दोनों माँ-बाप बेटे को देखने को तरसने लग गएI "JIO" की मेहरबानीसे बेटे से वीडियो कॉल तो हो ही जाता लेकिन बेटेको पास से देखने या छूने वाले सुकून से वह दोनों वञ्चित रह जातेI दो सालों में करण दो ही बार घर आ पाया था और मुश्किल से एक हफ्ता रुका होगाI तो ऐसे में करण की माँ दिन में उसे कमसेकम चार-पांच बार तो फ़ोन लगाती ही थीI

पहले-पहले करण भी बात कर लिया करता मगर वक़्त और माहौल ने उसको भी काफ़ी बदल सा दिया था और अब तो शहरकी चकाचौंद में वो अपने घरको भी भूलने लग गया थाI अब तो माँ का कॉल भी उसको चिड़चिड़ा कर देता, पिताजीसे तो वो मुश्किल से हफ्तेमें एक-दो बार बतियाता थाI

सप्ताहांत के चलते करणने अपने दोस्तों संग अगले दो दिनों का "रोड ट्रिप" का योजना बना लिया और इस दरमियान दारू और पार्टी में वो टल्ली हो गयाI रविवार की सुबह करीब आठ बजे माँ का कॉल देखकर वो चीड़ गया और "माँ! भी कभी पीछा ही नहीं छोड़ती" बोलते हुए उसने फ़ोन को "साइलेंट मोड" में बिठा दिया और पलटकर फिर सो गयाI तक़रीबन एक बजे उठकर उसने फ़ोन खोला समय देखने के लिए और पिताजी के दस और एक नए नंबर से पांच "मिस्ड कॉल" देखकर चौंक गयाI उसने तुरंत पिताजी का नंबर लगाया पर नंबर बंद था तो नए नंबर पर कॉल लगायाI
       "मिस्ड कॉल" (Missed Call) 
करण हक्का-बक्का रह गया और फूटफूटकर
रोने लगाI
उसके सारे दोस्त उसके पास आकर उससे पूछने लगे- "करण क्या हुआ? सब ठीक तो है?"

करण बस अपने मोबाइल को देखता रह गयाI
कॉल लॉग पर सुबह का वो माँ का आठ बजे वाला
"मिस्ड कॉल" अभी भी दिख रहा था उसे!

पूरी कहानी CAPTION में पढ़ें.............................. करण काफ़ी मेहनती लड़का थाI चार साल की "B.E" डिग्री के बाद "कैंपस प्लेसमेंट" के जरिए उसकी एक "MNC" में नौकरी लगी थीI दार्जीलिंग के एक छोटे से जिले का एक छोटा सा गाँव का लड़का आज "बेंगलुरु" जैसे बड़े शहर में अपना भविष्य बनाने की और एक कदम आगे बढ़ चूका था, जाहिर सी बात है- उसके माता-पिता बहुत खुश थे और गर्व के साथ अपने आस-पड़ोस के लोगों को मौका मिलते ही ये बात सुनाने से नहीं चूकते थेI
करण के पिताजी ने चौकीदारी का काम करके काफ़ी कष्ट उठाकर बेटे का बेंगलुरु जाके इंजीनियरिंग करने का सपना पूरा किया था!

वक़्त गुजरता गया और दो साल बीत गएI अब दोनों माँ-बाप बेटे को देखने को तरसने लग गएI "JIO" की मेहरबानीसे बेटे से वीडियो कॉल तो हो ही जाता लेकिन बेटेको पास से देखने या छूने वाले सुकून से वह दोनों वञ्चित रह जातेI दो सालों में करण दो ही बार घर आ पाया था और मुश्किल से एक हफ्ता रुका होगाI तो ऐसे में करण की माँ दिन में उसे कमसेकम चार-पांच बार तो फ़ोन लगाती ही थीI

पहले-पहले करण भी बात कर लिया करता मगर वक़्त और माहौल ने उसको भी काफ़ी बदल सा दिया था और अब तो शहरकी चकाचौंद में वो अपने घरको भी भूलने लग गया थाI अब तो माँ का कॉल भी उसको चिड़चिड़ा कर देता, पिताजीसे तो वो मुश्किल से हफ्तेमें एक-दो बार बतियाता थाI

सप्ताहांत के चलते करणने अपने दोस्तों संग अगले दो दिनों का "रोड ट्रिप" का योजना बना लिया और इस दरमियान दारू और पार्टी में वो टल्ली हो गयाI रविवार की सुबह करीब आठ बजे माँ का कॉल देखकर वो चीड़ गया और "माँ! भी कभी पीछा ही नहीं छोड़ती" बोलते हुए उसने फ़ोन को "साइलेंट मोड" में बिठा दिया और पलटकर फिर सो गयाI तक़रीबन एक बजे उठकर उसने फ़ोन खोला समय देखने के लिए और पिताजी के दस और एक नए नंबर से पांच "मिस्ड कॉल" देखकर चौंक गयाI उसने तुरंत पिताजी का नंबर लगाया पर नंबर बंद था तो नए नंबर पर कॉल लगायाI
darshanblon1957

Darshan Blon

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