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बरसात के दिनों में फुस की छत है टिपटिपाय। फिर भी भ

बरसात के दिनों में फुस की छत है टिपटिपाय।
फिर भी भगवान से मनाए की थोड़ा और बरसाए, थोड़ा और बरसाए।
क्योंकि सुख रहें हैं धान।
हाँ हूँ मैं किसान।। #बिना रस के कवि।
बरसात के दिनों में फुस की छत है टिपटिपाय।
फिर भी भगवान से मनाए की थोड़ा और बरसाए, थोड़ा और बरसाए।
क्योंकि सुख रहें हैं धान।
हाँ हूँ मैं किसान।। #बिना रस के कवि।