एक दीवाना था। (पार्ट 6) एक वक़्त था कि अपनी शादी के बारे में सोच कर अक्षत खुश हो जाता था। उसके मन ने कहीं ख़्वाब सजाये थे तनूजा को लेकर। पर ख़्वाब थे और ख़्वाब ही रह गये थे। जब मनहरलालजी ने लड़की देखने जाने की बात करी तो उसने हाँ कह दिया। प्यार तो उसने कर लिया था। अब तो बस समझौता ही करना था। क्या फर्क पड़ता लड़की चाहे कोई भी हो? अब तो सिर्फ अपने माँ-बाप की ख़ुशी के लिये ही शादी करनी थी। वह दिन भी आ गया जब अक्षत लड़की को पहली बार मिलने गया। उसका नाम नेहा था। वह दिखने में ठीक-ठाक थी और खास बात यह थी की रमा बहन को नेहा पसँद आ गई थी। “अक्षत! तुझे कैसी लगी नेहा? मुझे तो काफी पसँद आ गई।“ घर आते ही रमा बहन ने अक्षत से पूछ लिया। “जो आपकी पसँद वह मेरी पसँद!” अक्षत ने कह दिया। सुनकर घर में सब खुश हो गये। “यह तो बहुत अच्छा हुआ। में कल ही उनसे बात करूँगा और अगर उनकी भी हाँ होगी तो एक ही मंडप में मीना और तुम्हारी शादी करा देंगे।“मनहरलालजी ने कहा। रमा बहन और मनहरलालजी बहुत खुश थे। घर में दो शादियाँ थी। एक महीने बाद का मूहर्त निकला था। शादी की तैयारियाँ ज़ोर-शोर से चल रही थी। सब खुश थे सिवाय अक्षत के।