कभी नाहक प्रलाप करता रहा, कभी बेज़ा किसी से डरता रहा, ज़िन्दगी ख़र्च दी रेज़ा रेज़ा, कहाँ मरना था कहाँ मरता रहा, कभी जो कर्ज़ ना लिया वो भी, तमाम उम्र उसे भरता रहा, उगा कीचड़ में भी कमल जैसा, कोई मिट्टी में दबके सड़ता रहा, मखमली गद्दों पर सुकूँ न मिला, जिग़र में मर्ज़ अश्क झरता रहा, अपनी नाकामियाँ छुपाकर ख़ुद, हुआ बेचैन ख़ुद से लड़ता रहा, तबीयत कैसे सुधरती 'गुंजन', हृदय में प्यास लिए फिरता रहा, --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #प्रलाप करता रहा#