मन सवालों से घिरा है, हर शख्स इतना क्यों गिरा है। बेईमानी से जी रहा है, मन अवसादो से क्यों भरा है।। निज कर्म से वो दूर है, पर दूसरों पर क्यों जला है। छीनकर वो खा रहा है, निज सामर्थ्य क्यों बता रहा है।। निज स्वार्थ में वो लिप्त है, सामाजिकता क्यों भुला रहा है, अश्लीलता सामान्य अब है, परंपरा क्यों भुला रहा है।। विद्वता सब मे भरी है, दूसरों को क्यों सुना रहा है। हर बुराई स्वहित अच्छी, दूसरे के लिए बुराई बता रहा है।। राज खुशियों का ढूढता है, अपनों को क्यों रूला रहा है। सब हताहत हो रहे हैं, तू अपनों से क्यों जल रहा है।। मन सवालों से घिरा है, हर शख्स इतना क्यों गिरा है। 🖋कुशवाहाजी #बुरा #बुराई #अश्लीलता #जलन #शख्स