बोझिल सी ख़्वाहिशें जीती है स्त्री जीवन अपना बोझिल सी ख़्वाहिशों को मन में लिए,कभी मायके की ख़्वाहिशें तो कभी ससुराल की ख़्वाहिशें, करती है सबकी हर ख़्वाहिश को पूरी अपनी ख़्वाहिशों की कुर्बानी देकर,मायके में जन्म से लेकर युवावस्था तक माँ पापा की ख़्वाहिशों तले रहती,चाहती क्या है वो न चाहकर भी बता न पाती,आधा सफ़र जीवन का माँ पापा के उपनाम के साथ है जीती,सर्वगुण- सम्पन्नता का सम्मान लेकर ससुराल की दहलीज़ पर अपने हमसफ़र के उपनाम के साथ कदम है रखती,उसके मन की बची ख़्वाहिश वो वहाँ दम है तोड़ देती,ससुराल की ख़्वाहिशों में खुद को ढ़ाल अपनी ख़्वाहिशों के अस्तित्व को जानें कहाँ है वो खो देती, इसी कशमकश में हर लम्हा जीती है वो एक स्त्री है सबकी ख़्वाहिशों को अपनी ख़्वाहिशों में ढ़ालकर सभी को ख़ुश रखने की कोशिश करती है, फिर भी दुनिया उसको नहीं समझती है, ************************* तीसरी रचना- बोझिल सी ख़्वाहिशें #tarunasharma0004 #trendingquotes