ख़्वाबों में रोज़-रोज़ तुम आया न करो आ ही गई हो अगर तो फिर जाया न करो मासूम दिल है हमारा दुनियादारी की समझ नहीं बातों में अपनी गोल-गोल तुम हमें यूँ उलझाया न करो तैरने में यूं तो अब हम हो गए हैं माहिर फिर भी ख़्यालों में डुबाकर अपने हमें यूँ तड़पाया न करो... © trehan abhishek ♥️ मुख्य प्रतियोगिता-1002 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें! 😊 ♥️ दो विजेता होंगे और दोनों विजेताओं की रचनाओं को रोज़ बुके (Rose Bouquet) उपहार स्वरूप दिया जाएगा। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।