हृदय की तार से राग मल्हार बजा रहा हूँ मैं, आज सिर्फ मनासिब बंदिशे सुना रहा हूँ मैं, जिस तार ने छेड़े थे आरोह-अवरोह के अलाप फिर से थाट के वही सात स्वर गा रहा हूँ मैं। ©पंकज #मुक्तक #संगीतप्रेम