ज़रूरी नहीं क़सूर आँधी का हो चिराग़ बुझाने में। कभी-कभी हाथ से भी चिराग़ भुझाये जाते हैं।। ज़रूरी नहीं क़सूर आँधी का हो चिराग़ बुझाने में। कभी-कभी हाथ से भी चिराग़ भुझाये जाते हैं।। #ज़रूरी #नहीं #क़सूर #आँधी #का #हो #चिराग़ #बुझाने #में। #कभी-#कभी #हाथ #से #भी #चिराग़ #भुझाये #जाते #हैं।। #ललितकुमारगौतम #parnassianscafe #lalitkumargautam