चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गुँथा जाँऊ,,,,,,,,, चाह नहीं प्रेमी माला में बिँध प्यारी को ललचाऊँ,,,,,,,, चाह नहीं मैं सम्राटो के शव पर हे हरी डाला जाऊँ,,,,,,,,,, चाह नहीं देवौ के सीर पर चढूँ भाग्य पर ईठलाऊँ,,,,,,,,,, मुझे तोड़ लेना वनमाली उस पथ पर तुम देना फेंक,,,,,,,,,,,,, मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जावेँ जिस पथ वीर अनेक। (ये मेरी कविता नहीं है दोस्तों ) (ये माखनलाल चतुर्वेदी जी की कविता है ) ©SINGER RAJKUMAR देश भगती