कुरबत में जंग छिड़ गयी इक पीर के लिए, घर में दरार पड़ गयी जागीर के लिए। वो तो बिछड़ गये मगर कुछ तो निशां होगा, मुद्दत से परेशान हूँ तस्वीर के लिए। कितनों के पास दरिया है कितनों के समन्दर, कितने यहाँ तड़प रहें हैं नीर के लिए। कितना हूँ नासमझ मुझे मालूम नहीं था, आँसू को बहाता रहा इक हीर के लिए। कुरबत में जंग छिड़ गयी इक पीर के लिए, घर में दरार पड़ गयी जागीर के लिए।। #anandmaurya