मेरे जीवन के मधुवन में उपजा सुन्दर एक स्वप्न है प्रकृति की निश्छल गोद में अपना एक मनोहर भव्य सदन है मन की आशाओं से लम्बे वृक्षों की घनी छाया होती मेरी सच्चाई सी गहरी निर्मल निर्झर कलकल बहती मेरे मन के बालक से पंछी, वनचर किलकारी भरते फूल खिले मन आँगन में और सुगन्ध पावनता की होती आदित्य की प्रभात किरण दुर्बलता अंतर्मन की हरती आह! कितना रमणीय वक्त वो होता बस मैं और चिन्मय प्रकृति होती।। ज़रा सी धूप का जादू तो देखो, खिलें हैं फूल मन आँगन में कितने #मनआँगनमें #collab #yqdidi #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi