प्रेम में अल्हड़ बन लुटता रहा। रिश्तों की कतारों को देखता रहा। सब देकर भी इश्क में लुटता रहा। मैं मलंग सा प्रीत में बस झुमता रहा। बड़ी शिद्दत से नज़रों में ठगता रहा। ज़ख्म, अपने ही हाथों मैं सिलता रहा। ~~शिवानन्द #अल्हड़ #प्रेम