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मेरे हाथों को छूकर क्या करोगे, लकीरें सारी धुंधली

मेरे हाथों को छूकर क्या करोगे,
 लकीरें सारी धुंधली हो गई हैं, 
उन्हें तुम फिर जगाना चाहते हो, 
तमन्नायें हमारी सो गई हैं।
Mumtaz Naseem

©Anant Nag Chandan
  मेरे हाथों को छूकर क्या करोगे,
 लकीरें सारी धुंधली हो गई हैं, 
उन्हें तुम फिर जगाना चाहते हो, 
तमन्नायें हमारी सो गई हैं।
Mumtaz Naseem

मेरे हाथों को छूकर क्या करोगे, लकीरें सारी धुंधली हो गई हैं, उन्हें तुम फिर जगाना चाहते हो, तमन्नायें हमारी सो गई हैं। Mumtaz Naseem #Shayari

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