हर रात सुहागिन, सुबहः विधवा बनाते है, मेरे ज़िंदगी के किस्से हर रात बदल जाते है, मेरे जिस्म के टुकड़ो से अपनी भूख मिटते है, ये शरीफ लोग मुझे वैश्या बुलाते है। ज़िस्म के बाजार में मोल-भाव होती है मेरी, हर घंटे के हिसाब से बोली लगती है मेरी, मेरे जिस्म के टुकड़े हर रोज होते है, भुखे भेड़िये हर रोज नोचते है, मेरे किस्मत की बात है ज़नाब, मेरा जिस्म ही मेरी भूख मिटाता है, इसलिए हर इन्सान मुझे वैश्या बुलाता है। ©Vishal kumar vaishya