मै शिक्षक हूं ।जी हां मै ऐक शिक्षक हूं। कुम्हार का रूप दिया है मुझे, जो चोट मर कर घड़ा बनाता है। पर यह बीते दिनों की बात है कि चोट खाकर बच्चो के भविष्य का आकार बनाता था । आजकल तो थोड़ी सी चोट पर घड़ा बिखर कर जाता है। डॉक्टर सुई लगाए केंची चलाए सब सहन हो जाता है। और हम ऊंगली भी लगाए आहाकर मच जाता है। आहकार को सुनकर कभी ऐसा लगता है कि रहने दो कच्चा इस आकर को। पर अगले ही पल आदत से मजबूर, फिर से घड़ा बनाता हूं। सभी भूल कर फिर से चोट लगा देता हूं। आज मैंने दिल को समझा लिया है, समय की मांग यही है कि हाथ बांध कर घड़ा बनाओ। आकर मिले या ना मिले बस आगे बढ़ते जाओ। कविता मोदानी