वो मासूम तड़पता बिलखता है,कोई क्यो नही समझता मर्म है, सबने दीदा ए दानिस्ता निगाहें फेर ली या शायद खून ही गर्म है, अंतश्चेतना,मानवता बन नरभक्षी अन्तरात्मा का भक्षण कर गई, मर गई इंसानियत या कत्ल कर दिया,आज वो शर्मशार हो गई, जगाओ अन्दर के मानव को,वरन इस पीढ़ी का सर्वनाश तय है, न बनो रूढ़ एक मानवता से भरी आत्मा कर रही है अनुनय है।। 🎀 प्रतियोगिता संख्या- 11 🎀 शीर्षक- "शायद खून ही गर्म है...!" 🎀 समय सीमा- आज शाम 6 बजे तक। 🎀 सभी लेखकों को इस शीर्षक पर 6 पंक्तियांँ लिखनी हैं।