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आखिर इतना भी क्या खोजते हो जो बहुत सोचते हो, ख़

आखिर 
इतना भी क्या 
खोजते हो जो 
बहुत सोचते हो,
ख़ाक ही तो है
एक दिन हस्र सभी का 
फिर क्यूं रोज रोज 
तुम मरते हो।
दर्द ए मोहब्बत
के हो मरीज
या रकम जोड़ते हो,
किस बात की है 
फ़िक्र तुमको आजकल
जो नींद में हो बुदबुदाते
सरे राह गिरते हो।
कोई तो है माजरा,
जो बहुत सोचते हो। बहुत सोचते हो।
आखिर 
इतना भी क्या 
खोजते हो जो 
बहुत सोचते हो,
ख़ाक ही तो है
एक दिन हस्र सभी का 
फिर क्यूं रोज रोज 
तुम मरते हो।
दर्द ए मोहब्बत
के हो मरीज
या रकम जोड़ते हो,
किस बात की है 
फ़िक्र तुमको आजकल
जो नींद में हो बुदबुदाते
सरे राह गिरते हो।
कोई तो है माजरा,
जो बहुत सोचते हो। बहुत सोचते हो।