कैसे दूर होगी पृथ्वी की उदासी, कैसे खिलेंगे गुल बहार के, कब लौटेगी रंगत उसकी, कब निकलेंगे ये पल बे-बहार के।। अब मिले इस को भी तो, इंतज़ार का फल मीठा-मीठा सा, जल्दी सुलझे उलझने सारी, फ़िर लौटे दिन सदा-बहार के।। -संगीता पाटीदार कैसे दूर होगी पृथ्वी की उदासी, कैसे खिलेंगे गुल बहार के, कब लौटेगी रंगत उसकी, कब निकलेंगे ये पल बे-बहार के।। अब मिले इस को भी तो, इंतज़ार का फल मीठा-मीठा सा, जल्दी सुलझे उलझने सारी, फ़िर लौटे दिन सदा-बहार के।। -संगीता पाटीदार नमस्ते लेखकों!