एक अधूरा ख्वाब, ममेरे साथ बेठा मुझे ख्वाब सुना रहा है.. धिरे धिरे, मेरी नींद से फासला बडता जा रहा है.. हर रात आ जाता है ये इस उम्मीद से मुझसे मिलने.. मुझे रात में क्या काम है, मेरा क्या जा रहा है.. कभी सोचता हूं कि बहुत ज्यादा मूंह लगा लिया है मेंने इन गरीब, कुचले, टुटे ख्वाबों को.. फिर सोचता हूं, इन बेचारों का मेरे अलावा है ही कोन यही वज़ह है, ये सामने अपने आंसू बहा रहा है एक अधूरा ख्वाब..