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मैं अल्हड़ आवारा भौंरा हूँ कोई खिलती पुष्प कली हो

मैं अल्हड़ आवारा भौंरा हूँ
कोई खिलती पुष्प कली हो तुम
मैं अलि तुम्हारे बागाँ का
मेरी कतिपय एक अली हो तुम

मैं अनुराग प्रेम का याचक
तुम स्नेहवन की कस्तूरी हो
मैं तुम बिन अर्ध चन्द्र सा हूँ
तुम मुझ बिन निरा अधूरी हो

मैं पत्थर मूर्ख अचल सा हूँ
तुम निर्झर सी मुझपे गिरती हो
मैं तुझमें घुलने को आतुर हूँ
तुम मुझमें घुलने को बिखरती हो

पर न मैं तुझमें घुल पाया हूँ
और ना मुझमें कभी घुली हो तुम
मैं अलि तुम्हारे बागाँ का
मेरी कतिपय एक अली हो तुम

जैसे घटा घनेरी कारी बदरी
कंचन बूँदों से परिलक्षित है
मेरी श्यामल देह भी तेरे प्रेम में
वैसी उजली और सुशोभित है

बिखेर गगन में प्रेम राग तुम
नभ सुमेरु कर जाती हो
अपने अधरों की छटा घोल
क्षितिज और गेरू कर जाती हो

किंतु क्षितिज पे धरा अम्बर ही
मिलकर भी कहाँ मिल पाते हैं
वैसे ही तुमसे मिला नहीं मैं
 और मुझसे नहीं मिली हो तुम

मैं अलि तुम्हारे बागाँ का
मेरी कतिपय एक अली हो तुम

#चौबेजी

©Choubey_Jii
मैं अल्हड़ आवारा भौंरा हूँ
कोई खिलती पुष्प कली हो तुम
मैं अलि तुम्हारे बागाँ का
मेरी कतिपय एक अली हो तुम

मैं अनुराग प्रेम का याचक
तुम स्नेहवन की कस्तूरी हो
मैं तुम बिन अर्ध चन्द्र सा हूँ
तुम मुझ बिन निरा अधूरी हो

मैं पत्थर मूर्ख अचल सा हूँ
तुम निर्झर सी मुझपे गिरती हो
मैं तुझमें घुलने को आतुर हूँ
तुम मुझमें घुलने को बिखरती हो

पर न मैं तुझमें घुल पाया हूँ
और ना मुझमें कभी घुली हो तुम
मैं अलि तुम्हारे बागाँ का
मेरी कतिपय एक अली हो तुम

जैसे घटा घनेरी कारी बदरी
कंचन बूँदों से परिलक्षित है
मेरी श्यामल देह भी तेरे प्रेम में
वैसी उजली और सुशोभित है

बिखेर गगन में प्रेम राग तुम
नभ सुमेरु कर जाती हो
अपने अधरों की छटा घोल
क्षितिज और गेरू कर जाती हो

किंतु क्षितिज पे धरा अम्बर ही
मिलकर भी कहाँ मिल पाते हैं
वैसे ही तुमसे मिला नहीं मैं
 और मुझसे नहीं मिली हो तुम

मैं अलि तुम्हारे बागाँ का
मेरी कतिपय एक अली हो तुम

#चौबेजी

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Choubey_Jii

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