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ये मंजिल तेरा घर कहाँ है, तुझे मैंने तलशा बड़ा है।

ये मंजिल तेरा घर कहाँ है,
तुझे मैंने तलशा बड़ा है।
अब जब तेरा पता लगा तो मालूम चला कि
तू रहता दूर बड़ा है।

मंजिल तेरे रस्तो में खूब काटे पड़े है,
जो हमें चुभे बड़े है।
फिर भी मेरे कदम कभी डगमगाए नहीं,
हिम्मत कभी मैंने झुकाया नहीं।

खूब कि कोशिश बड़ी दौड़ भी लगाई,
पर तुझ तक पहुंच ना पाई।
थक सी गई तो सोचा लौट जाती हूं फिर से घर को अपने।
छोड़ देती हूं तुझसे मिलने के सपने।

फिर जब पीछे मुड़ कर देखा
तो पाया कि वापस जाने का रास्ता ख़ूब बड़ा है।
और तू मुझसे बस कुछ ही दूर खड़ा है।

©purvarth #मजिल
ये मंजिल तेरा घर कहाँ है,
तुझे मैंने तलशा बड़ा है।
अब जब तेरा पता लगा तो मालूम चला कि
तू रहता दूर बड़ा है।

मंजिल तेरे रस्तो में खूब काटे पड़े है,
जो हमें चुभे बड़े है।
फिर भी मेरे कदम कभी डगमगाए नहीं,
हिम्मत कभी मैंने झुकाया नहीं।

खूब कि कोशिश बड़ी दौड़ भी लगाई,
पर तुझ तक पहुंच ना पाई।
थक सी गई तो सोचा लौट जाती हूं फिर से घर को अपने।
छोड़ देती हूं तुझसे मिलने के सपने।

फिर जब पीछे मुड़ कर देखा
तो पाया कि वापस जाने का रास्ता ख़ूब बड़ा है।
और तू मुझसे बस कुछ ही दूर खड़ा है।

©purvarth #मजिल