जन्म और मृत्यु तटबन्धों के, मध्य ये जीवन--धार है। साँस का रेला -- समय का खेला, कर्मों की पतवार है।। जितना जो भी डूबा इसमें, उतना उसने पार किया है। 'अनुपम' जिसने हिम्मत हारी, वो आर है -- न -- पार है।। #मुक्त कंठ अम्बर!