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कण-कण में व्याप्त मैं, रग-रग का प्राण हूं, मुझे

कण-कण में व्याप्त मैं,

रग-रग का प्राण हूं,

मुझे न कोई रोक सके,

मैं ही वीरता का प्रमाण हूं।

हां मैं ब्राह्मण,

मैं ही परशुराम हूं।

रावण का सार मैं,

मैं ही परशु,

मैं वो प्रताप हूं,

मैं सिर्फ जाती में नहीं,

मैं पुरषोत्तम श्री राम हूं,

तुम जानते नहीं,

मैं ही ब्राह्मण,

मैं ही परशुराम हूं।

मेरे में अहं,

मैं ही अहंकार हूं,

क्षत्रिय के छोड़े शस्त्र का सहारा,

और मानवता को लगने वाला चमत्कार हूं,

हां मैं ब्रह्मण,

मैं परशुराम हूं,

और मैं अपने आप में एक विचार हूं!!!

©Aatish Chandra Mishra #ब्राह्मण #अहंकार #घमंड 
#कविता #ओज #परशुराम
कण-कण में व्याप्त मैं,

रग-रग का प्राण हूं,

मुझे न कोई रोक सके,

मैं ही वीरता का प्रमाण हूं।

हां मैं ब्राह्मण,

मैं ही परशुराम हूं।

रावण का सार मैं,

मैं ही परशु,

मैं वो प्रताप हूं,

मैं सिर्फ जाती में नहीं,

मैं पुरषोत्तम श्री राम हूं,

तुम जानते नहीं,

मैं ही ब्राह्मण,

मैं ही परशुराम हूं।

मेरे में अहं,

मैं ही अहंकार हूं,

क्षत्रिय के छोड़े शस्त्र का सहारा,

और मानवता को लगने वाला चमत्कार हूं,

हां मैं ब्रह्मण,

मैं परशुराम हूं,

और मैं अपने आप में एक विचार हूं!!!

©Aatish Chandra Mishra #ब्राह्मण #अहंकार #घमंड 
#कविता #ओज #परशुराम