एक थे राजा इंदर मशहूर थे अप्सराओं से भरे दरबार के लिए मेनका, उर्वशी, रंभा और अनगिनत मन बहलाने के लिए एक से एक हसीन और खूबसूरत हूरें रक़्स करती, मन बहलाती, मदिरा पिलाती पार्श्व में एक अनाम रक़्क़ासा भी थी जिस पर इंदर का ध्यान कभी न जाता था जाता भी क्यों दरबार हो भरा जब अप्सराओं से हां लेकिन अप्सराओं कि ग़ैर हाज़िरी में यही रक़्क़ासा आ जाती थी दरबार में बीचो बीच राजा का मन बहलाने वही रक़्स करने, मदिरा पिलाने राजा का मन रखने राजा को भी कहां फ़र्क़ पड़ता था उसका तो बस मन बहलते रहना चाहिए था और फिर जब इंदर की मनपसंद हूरें वापस आ जाती थीं तो रक़्क़ासा ख़ुद ही ख़ामोशी से कदम पीछे कर चली जाती थी पार्श्व में फिर एक रोज़ हुआ यूं कि जब कोई भी हूर न आई और राजा का प्याला ख़ाली ही रहा तो उस रोज़ राजा को याद आयी वो रक़्क़ासा लेकिन वो तो इस बीच कूच कर चुकी थी राजा के तग़ाफ़ुल से बेज़ार हो निकल चुकी थी कहीं कई रोज़ तक राजा याद करता रहा उसे जब तक दोबारा उसका प्याला न भर गया musings - 10/11/18