गुनगुनी धूप ये दिसम्बर की ! याद दिलाती है एक सितम गर की !! कहता था हमसफर हूँ तेरा ! जज्बातों की फिर क्यूं न कदर की !! मौसम की तरह बदल गया वो ! तन्हा जिन्दगी मैंने बसर की !! दीवाना था शायद खुबसूरती का ! सादगी "अनु " की न उस पर असर की !! गुनगुनी धूप में ज़िंदगी के रंगों को अपने शब्दों में क़ैद करें लोगों के क्रिया कलाप फूल-पौधों, तितलियों, पंछियों के रंग-ढंग कामगारों के जोश और उमंग #गुनगुनीधूप