" हां ,मैं एक पतंग हूं एक ऐसी पतंग, जिसकी ज़िंदगी का आधार एक डोर है दूसरों के हाथों ने ही थामा जिसके जीवन का छोर है जो कुछ नहीं कहती है, बस उड़ती जाती है नये नये रिश्तों से जैसे जुड़ती जाती है एक अंजाना सा डर मुझको हर पल सताता है जब लुट जाने का ख़तरा मेरे सिर पर मंडराता है ना जाने कब बेपरवाह हाथों से मैं कट जाऊंगी फिर समय-समय पर लोगो में मैं बंट जाऊंगी मुझको तो लोगों ने बस एक खेल ही माना ना किसी ने मेरे मन को समझा, ना किसी ने मेरे दिल को जाना एक पल मैं आसमां छू लेती हूं , तो दूजे पल में ज़मी पर आ जाती हूं कुछ भी तो कह सकती नहीं मैं, कब किसको भा जाती हूं अलग-अलग रंग हैं मेरे, अलग-अलग हैं मेरे रूप मेरे जीवन के दो पहलू हैं, एक छांव है और दूजा धूप मुझको हासिल करने की, सबमें लग जाती एक होड़ है मेरी मंज़िल के रास्ते में, कई भंवर हैं, कई मोड़ हैं कभी रिश्तों में उलझ जाती, तो कभी जज़्बातों में फंसती हूं फिर अपनी बेबसी पर ख़ुद ब-ख़ुद मैं हंसती हूं हां, मैं एक पतंग हूं एक ऐसी पतंग, जिसकी ज़िदगी का आधार एक डोर है दूसरों के हाथों ने ही थामा जिसके जीवन का छोर है ©Roohi Quadri #womemlife #Comparativetheory #womandeservessalute