जबसे बाहर पढ़ने/कमाने को जाना हुआ ख़ुद का ही घर मुसाफ़िर खाना हुआ जिस गांव की गलियां पांव तले चलती थीं आज वही गांव क्यूं हमसे बेगाना हुआ। पूरे दिन गांव में सबका घर नाप आते थे आज सगे भाई का घर भी बेगाना हुआ। बचपन की होली में गांव भर को रंग लगाते थे आज की होली में मन मसोस रह जाना हुआ। जबसे लकीरें खींच गईं हैं दिलों के बीच में तबसे ख़ुद में ही मेरा खो जाना हुआ। कहानियां बड़ों से सुनते थे हर शाम को आज सबका अलग ही फ़साना हुआ।✍️ "चंचल" #Life #दिन #वो दिन