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गांधारी, आज भी।। कथा सुनो, मैं तुम्हे सुनाऊं, एक

गांधारी, आज भी।।

कथा सुनो, मैं तुम्हे सुनाऊं, एक रानी गांधारी की।
एक अबला के द्वंद्व की, दुख दर्द और लाचारी की।

पतिमोह में पट्टी बांधी, 
पुत्रमोह ने जकड़ा था।
जो झांको उसके मन ने,
अंतर्द्वंद्वओं का झगड़ा था।
थी अवतार मति की वो,
एक अंधे से बांधी गयी।
ये कपटी लक्ष्मण रेखा,
भीष्म के द्वारा लांघी गयी।
पतिमोह या विरोध था,
दुनिया से अनजान हुई।
अपने पूत को देखा नहीं,
जिसकी सौ सौ संतान हुई।
पर्दा पड़ा था आंखों पर,
धृतराष्ट्र जिसे न देख सका।
गांधारी के कहने पर भी,
उतार जिसे न फेंक सका।
उस अबला की है कहानी,
जिसने भगवन को शाप दिया।
आदि अनन्त स्वरूप जिसका,
उसका कूल तक माप दिया।
आंख रही पर देख न पायी, रंग वो उजियारी की।
कथा सुनो, मैं तुम्हे सुनाऊं, एक रानी गांधारी की।

ये युग तो बदला बहुत पर,
वही कहानी जारी है।
धृतराष्ट्र अभी भी अंधा है,
पट्टी डाले गांधारी है।
भीष्म अमर है यहां मगर,
वो सत्ता का रखवाला है।
अपना वचन निभाने को,
घी डाले जहां भी ज्वाला है।
सत्ता भोगी बन बैठे कौरव,
भारत माँ पट्टी बांध खड़ी।
मज़हब शकुनि बन डटा रहा,
उसकी संताने निर्बाध लड़ी।
शाप भी वो अब दे किसको,
कहाँ कृष्ण वो पाती है।
हर वाणी में दुर्योधन बैठा,
कर्कश तीक्ष्ण वो पाती है।
पुत्रों के खोने का दंश,
कहो वो कैसे सह पाती।
मुख पे भी ताले डाल रखी,
सच भी वो कैसे कह पाती।
कल भी वही, आज वही है, व्यथा हर नारी की।
कथा सुनो, मैं तुम्हे सुनाऊं, एक रानी गांधारी की।

©रजनीश "स्वछंद" गांधारी, आज भी।।

कथा सुनो, मैं तुम्हे सुनाऊं, एक रानी गांधारी की।
एक अबला के द्वंद्व की, दुख दर्द और लाचारी की।

पतिमोह में पट्टी बांधी, 
पुत्रमोह ने जकड़ा था।
जो झांको उसके मन ने,
गांधारी, आज भी।।

कथा सुनो, मैं तुम्हे सुनाऊं, एक रानी गांधारी की।
एक अबला के द्वंद्व की, दुख दर्द और लाचारी की।

पतिमोह में पट्टी बांधी, 
पुत्रमोह ने जकड़ा था।
जो झांको उसके मन ने,
अंतर्द्वंद्वओं का झगड़ा था।
थी अवतार मति की वो,
एक अंधे से बांधी गयी।
ये कपटी लक्ष्मण रेखा,
भीष्म के द्वारा लांघी गयी।
पतिमोह या विरोध था,
दुनिया से अनजान हुई।
अपने पूत को देखा नहीं,
जिसकी सौ सौ संतान हुई।
पर्दा पड़ा था आंखों पर,
धृतराष्ट्र जिसे न देख सका।
गांधारी के कहने पर भी,
उतार जिसे न फेंक सका।
उस अबला की है कहानी,
जिसने भगवन को शाप दिया।
आदि अनन्त स्वरूप जिसका,
उसका कूल तक माप दिया।
आंख रही पर देख न पायी, रंग वो उजियारी की।
कथा सुनो, मैं तुम्हे सुनाऊं, एक रानी गांधारी की।

ये युग तो बदला बहुत पर,
वही कहानी जारी है।
धृतराष्ट्र अभी भी अंधा है,
पट्टी डाले गांधारी है।
भीष्म अमर है यहां मगर,
वो सत्ता का रखवाला है।
अपना वचन निभाने को,
घी डाले जहां भी ज्वाला है।
सत्ता भोगी बन बैठे कौरव,
भारत माँ पट्टी बांध खड़ी।
मज़हब शकुनि बन डटा रहा,
उसकी संताने निर्बाध लड़ी।
शाप भी वो अब दे किसको,
कहाँ कृष्ण वो पाती है।
हर वाणी में दुर्योधन बैठा,
कर्कश तीक्ष्ण वो पाती है।
पुत्रों के खोने का दंश,
कहो वो कैसे सह पाती।
मुख पे भी ताले डाल रखी,
सच भी वो कैसे कह पाती।
कल भी वही, आज वही है, व्यथा हर नारी की।
कथा सुनो, मैं तुम्हे सुनाऊं, एक रानी गांधारी की।

©रजनीश "स्वछंद" गांधारी, आज भी।।

कथा सुनो, मैं तुम्हे सुनाऊं, एक रानी गांधारी की।
एक अबला के द्वंद्व की, दुख दर्द और लाचारी की।

पतिमोह में पट्टी बांधी, 
पुत्रमोह ने जकड़ा था।
जो झांको उसके मन ने,