दंश (In Caption) Part I Ch- 5 हर रोज़ की तरह आज के दिन भी रोड पर ट्रैफिक जाम लगा हुआ था, गाड़ियों का यह शोर दुनिया में सब ठीक या कहो एक सा होने का संकेत था; पर मेरा दिमाग उस सीसीटीवी फुटेज में से सुराग ढूंढने में लगा था। "इंस्पेक्टर सरफ़राज़ यहां फुटेज में कुछ मिला है हमें, कोई इंसान है , ठीक से कह नहीं सकते कि मर्द है या औरत, क्योंकि उसने बुर्के से खुद को छिपाया हुआ है; उसने ही करीब शाम 6:00 बजे के आसपास वो बैग वहां रखा था।" सुबह को जब करोल बाग पुलिस स्टेशन से यह खबर मिली तो मैं वापस फुटेज देखने लगा। कोई छ: फ़ुट लंबा इंसान था वो, इतना ही समझ पाया मैं फुटेज से। मैं अपनी केबिन से बाहर निकला, मिश्रा को साथ लिया और मेट्रो स्टेशन की तरफ़ निकल पड़ा, पर वहां पूछताछ में कुछ ख़ास पता नहीं चला। "दिल्ली का दिल इतना बड़ा है कि वह हर चीज़ अपने अंदर समेट कर उसे उसी भीड़ में गुम कर देती है, यहां भी कुछ वैसा ही हाल था..." यही सब सोचता हुआ मैं जसोला की तरफ़ निकल पड़ा, तनु के दोस्तों से पूछताछ करने.....