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बहुत कुछ सीखाना चाहती, ये दुनिया।। मगर ये दिल, इनस

बहुत कुछ सीखाना चाहती,
ये दुनिया।।
मगर ये दिल, इनसे दूर हैं।।
काग़ज़ी पत्तो से रुतबा क्या करें
जब इंसानियत ही इनसे दूर हैं।।

बहुत चला किनारों पे
मगर कभी ठोकर नहीं लगीं
पूछा ऐसा क्यों हैं।।
बोली तेरी निगाहें,मुझपे ठहरी।।

कौन कहता है पत्थर पे
फूल नहीं खिलते।।
अपनी दिल के सयाही से 
कारनामे तो दिखाओ
पत्थर पे भी सनम के लकीर
मिलते हैं।।

वो आती है, आने दो
हम भी देखे
वो कौन सा मंज़र है।।
अगर दीदार- ऐ- वतन में शामा
जली तो ।।
मेरे गुलशन तारीख़ की
मलिकाए हज़ूर होंगी।।

        " प्रेम दिवान" प्रेम दीवान

#CalmingNature
बहुत कुछ सीखाना चाहती,
ये दुनिया।।
मगर ये दिल, इनसे दूर हैं।।
काग़ज़ी पत्तो से रुतबा क्या करें
जब इंसानियत ही इनसे दूर हैं।।

बहुत चला किनारों पे
मगर कभी ठोकर नहीं लगीं
पूछा ऐसा क्यों हैं।।
बोली तेरी निगाहें,मुझपे ठहरी।।

कौन कहता है पत्थर पे
फूल नहीं खिलते।।
अपनी दिल के सयाही से 
कारनामे तो दिखाओ
पत्थर पे भी सनम के लकीर
मिलते हैं।।

वो आती है, आने दो
हम भी देखे
वो कौन सा मंज़र है।।
अगर दीदार- ऐ- वतन में शामा
जली तो ।।
मेरे गुलशन तारीख़ की
मलिकाए हज़ूर होंगी।।

        " प्रेम दिवान" प्रेम दीवान

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