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हुलियां कलपूं परं बुलियां मं हां।

             हुलियां कलपूं परं बुलियां मं हां।
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 हुलियां कलपूं परं बुलियां मं हां।
(ऊपर वर्णित हड़प्पा अष्टम चिन्ह लिपि वर्ण भाव है )
यह मेरी दिव्य अनुभूति से अपना अनुभव प्रस्तुत कर रहा हूं।
आधुनिक काल में इसका अर्थ इस प्रकार है 
हे परमत्तव अंश।
भगवान के कल्पवृक्ष की सन्तान ही महान होती है,
हे मां जननी कामाख्या,
भगवान का कल्पवृक्ष कितना महान होगा।
 यह विचार भाव पीपल के वृक्ष के निचे बैठकर अनेकों पक्षियों,
 के द्वारा अपने शरीर ऊपर विष्ठा पड़ने पर भावुक हो जाते थे।
 हड़प्पा संस्कृति के लोग और 
इस ही भावुकता से गहराई से,उन्हें धीरे -धीरे
 जानवरों का शिकार भी करना खत्म कर दिया था। 
हड़प्पा कालीन में इसके साथ ही पक्षियों की तरह,
पीपल और वट वृक्ष निचे दिन रात होने पर 
दीपक जलाकर रहना शुरू कर दिया था।
 खुल्ले वातावरण में आने का मुल कारण भी 
हड़प्पा संस्कृति काल यही एक मुल भाव चिन्ह लिपि ही था।
इस लिपि चिन्ह के कारण शाकाहारी होने का भी प्रमाण है। 
प्रथम हड़प्पा सभ्यता को यह प्रेरणा सर्वप्रथम 
पीपल पर बैठे अनेकों पक्षियों से मिला था।

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