अनुशीर्षक में देखिए बंधन मुक्त, स्वतंत्र रिश्ते को समाज धिक्कारता है। ऐसा रिश्ता रखने वाले लोगों को घृणित दृष्टि से देखा जाता है, यदि लोगों को भनक लग जाती है कि कोई युगल बिना विवाह बंधन के भी प्रेम में लिप्त है तो उस युगल के ऊपर ताने कसते हैं, उसे बहिष्कृत किया जाता है । कई बात ऐसे मामले भी आते हैं जिनमे ख़बर मिलती है कि प्रेमियों की पीटकर हत्या कर दी जाती है, ऐसे बहुत सारे मिलते जुलते विषय हैं जो तथ्यपरक और मानवीय तो हैं पर समाज उन्हें स्वीकार नही करता। एक मशहूर कहावत है 'मियां बीवी राज़ी तो क्या करेगा काज़ी' ,अब इस कहावत को ही देख लीजिए ये कथनी भारत मे इतनी मशहूर है कि इसे हर जगह पे बोला जाता है। इस कहावत का मतलब हुआ कि लड़का-लड़की बालिग़ हैं तथा एक दूसरे को पसंद करते हैं तो वे प्रेम कर सकते हैं, परंतु यथार्थ इसके उलट है। हमारे समाज मे प्रेम संबंध स्थापित करने का केवल एक रास्ता है-परम्परागत विवाह, वह भी इस शर्त पे की लड़का और लड़की एक ही जाति, धर्म तथा समुदाय के हों। वास्तव में , लोग आज भी जाति-मज़हब से ऊपर नही उठ पा रहे तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण नही अपना पा रहे। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले की हालिया घटना है जिसमे विवाह के तीन साल बाद पति की जघन्य हत्या कर दी गयी जिसका कारण था- अंतरजातीय विवाह। हमारे देश के संविधान को ही ले लिया जाय, उसमें साफ़-साफ़ लिखा है कि अंतरजातीय प्रेम संबंधों को बढ़ावा देना चाहिए। परंतु हमारा समाज इस बात को आज तक न स्वीकार सका। मुझे लगता है इन सब विषयों पर हमें बेहतर तरीके से सोचना होगा हमें परंपरा और रूढ़ि से आगे बढ़कर सोचना पड़ेगा। यदि मोहल्ले के किसी नेता टाइप या बुजुर्ग व्यक्ति को खड़ा करके की बराबरी विषय पर बोलने को कह दो तो वह इतनी बड़ी-बड़ी बहस करेगा कि मानो वह तो न्याय का देवता है, परंतु यदि उसके घर पे निहार के आएंगे तो पता चलेगा कि घर की महिलाओं को बिना घूंघट किये घर से बाहर नही आने दिया जा रहा है और घर के मर्द बनियान-पजामा पहने बाहर चाय पी रहे हैं। इसी दोहरी मानसिकता के कारण न चाहते हुए भी ऐसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं और आगे भी होती रहेंगी, अब समय है कि हमें रूढ़ि और मानवता में से एक का चुनाव करना होगा।