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कहतें हैँ सब ग़जल वो पूर्णिमा की रात है,जिसके हर लय

कहतें हैँ सब ग़जल वो पूर्णिमा की रात है,जिसके हर लय में बिखरी चांदनी की बात है
पर मैं कहतीं हूँ ग़जल वो अमावास की रात है,जिसके हर लय में अंधेरी खामोशी की झनकार है
कहीं प्रकृति का रूपण तो कहीं,राधा का श्रृंगार है
कहीं वियोग की वेदना तो कहीं संयोग अपार है
कहीं विजय संघर्षों पर तो कहीं सुख की हार है
कहीं भास्कर सम तीव्र आभा तो कहीं चंद्र सम अमृत की धार है
ग़जल में तो जीवन का सारा सार है।

©virutha sahaj #माईने गजल के
कहतें हैँ सब ग़जल वो पूर्णिमा की रात है,जिसके हर लय में बिखरी चांदनी की बात है
पर मैं कहतीं हूँ ग़जल वो अमावास की रात है,जिसके हर लय में अंधेरी खामोशी की झनकार है
कहीं प्रकृति का रूपण तो कहीं,राधा का श्रृंगार है
कहीं वियोग की वेदना तो कहीं संयोग अपार है
कहीं विजय संघर्षों पर तो कहीं सुख की हार है
कहीं भास्कर सम तीव्र आभा तो कहीं चंद्र सम अमृत की धार है
ग़जल में तो जीवन का सारा सार है।

©virutha sahaj #माईने गजल के