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कर के ख़ाक ए वज़ूद मेरा शर्म-ओ-हया गयी नहीं उनकी आ

कर के ख़ाक ए वज़ूद मेरा शर्म-ओ-हया गयी नहीं उनकी आज भी,
ए बेख़बर!
देखो महफ़िल में कैसे नज़रें झुकाए बैठे हैं वो अब भी।। #65
कर के ख़ाक ए वज़ूद मेरा शर्म-ओ-हया गयी नहीं उनकी आज भी,
ए बेख़बर!
देखो महफ़िल में कैसे नज़रें झुकाए बैठे हैं वो अब भी।। #65