"कहां आसां होता है " रोज खुद से , एक नयी जंग लड़ना कहाँ आसान होता है, बिखर कर टुकड़ों में , खुद को समेटना कहाँ आसां होता है || लोग आयेंगे तोड़ेंगे रौंदकर चले जाएंगे, फिर से खुद को बनाना कहां आसां होता है, कोमल मिट्टी से बने थे तुम , लोगों के पत्थरों से मिलना कहां आसां होता है, बहुत फेकेंगे पत्थर भी तुम्हारी ओर, सबको ढोकर चलना कहां आसां होता है, वो रोशन करेंगे आसमा तुम्हारा, अंधेरी रात से लड़ना कहां आसां होता है, हर्फ़ दर हर्फ़ घुलते रहे तुम खुद को पीछे छोड़ना कहाँ आसां होता है, मुमकिन होता कि दो पल ठहर पाते तुम, इस भीड़ के धक्कों से बचना कहां आसां होता है, माना कि थक गए हो इस रेस में तुम, यूं हथियार डालना भी कहां आसां होता है, एक उम्र गुजार दी जाती है, इस लीग से हटना भी कहां आसां होता है, मयस्सर लोग चले जाते हैं चिता पर लकड़ी रखकर, उस तपती आग में जलना कहां आसां होता है|| ©parijat #WinterSunset#कहां #आसा #होता #है