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"बिन प्रकृति सब सून" खिसकते पहाड़, उफनाती नदी जहरी

"बिन प्रकृति सब सून"

खिसकते पहाड़, उफनाती नदी
जहरीली हवा ,इक्कसवीं सदी।
तकनीकी के शिखर, पहुँचे हम
फैला भय, फिर भी हर दम।
गंदे जलाशय, गंदी नदी
कैसी होगी, 22 वीं सदी।
भावी पीढ़ी को, क्या दे जायेंगे
क्या धीरे धीरे विलुप्त हो जायेंगे?
कितने घर तू बनाएगा
क्यूँ ना इतने में रह पायेगा ?
जल, जंगल , जमीं
क्यूँ दिखती इनकी कमीं? 
इनका कर कब चुकायेगा
क्या इनके बिना रह पायेगा?
वास्तविक बुद्धि सब उजाड़ गई
कृत्रिम बुद्धि से अब क्या पायेगा?
खूब इतराता दूजे ग्रह जाकर
इस पृथ्वी को कब बचायेगा?
ना आसमां छोड़ा , ना जमीं छोड़ी
हर प्रदूषण पर, मानव छाप छोड़ी ।
प्लास्टिक कचरे से, धरती को पाटा
वृक्ष तो वृक्ष, पहाड़ तक को  काटा।
अस्तित्व की दहलीज पर 
देता परमाणु धमकी।
जबकि हिला देता
तुझे बुखार चमकी।
बाहर से दमदार
अन्दर से तू राख है।
बिना प्रकृति के
तेरा वजूद ही खाक है।
बिना प्रकृति के
तेरा वजूद ही खाक है।।
 
To be continued.......
                           23/08/2019
                            11:05 am
"बिन प्रकृति सब सून"

खिसकते पहाड़, उफनाती नदी
जहरीली हवा ,इक्कसवीं सदी।
तकनीकी के शिखर, पहुँचे हम
फैला भय, फिर भी हर दम।
गंदे जलाशय, गंदी नदी
कैसी होगी, 22 वीं सदी।
भावी पीढ़ी को, क्या दे जायेंगे
क्या धीरे धीरे विलुप्त हो जायेंगे?
कितने घर तू बनाएगा
क्यूँ ना इतने में रह पायेगा ?
जल, जंगल , जमीं
क्यूँ दिखती इनकी कमीं? 
इनका कर कब चुकायेगा
क्या इनके बिना रह पायेगा?
वास्तविक बुद्धि सब उजाड़ गई
कृत्रिम बुद्धि से अब क्या पायेगा?
खूब इतराता दूजे ग्रह जाकर
इस पृथ्वी को कब बचायेगा?
ना आसमां छोड़ा , ना जमीं छोड़ी
हर प्रदूषण पर, मानव छाप छोड़ी ।
प्लास्टिक कचरे से, धरती को पाटा
वृक्ष तो वृक्ष, पहाड़ तक को  काटा।
अस्तित्व की दहलीज पर 
देता परमाणु धमकी।
जबकि हिला देता
तुझे बुखार चमकी।
बाहर से दमदार
अन्दर से तू राख है।
बिना प्रकृति के
तेरा वजूद ही खाक है।
बिना प्रकृति के
तेरा वजूद ही खाक है।।
 
To be continued.......
                           23/08/2019
                            11:05 am
balwantrautela5554

मलंग

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