------------------------------------ लुभाने लगी मुझे देह की कसावट। भाने लगी मुझे देह की सजावट। बहाने करता हूँ तुमसे बात करने के, ख़्वाबों की होने लगी सुगबुगाहट। बहकाये से ख़याल हैं आजकल मेरे, कजलाये पलकों में बादल दिखाई देता है। आँखों के सागर में डूबने लगा हूँ मैं, लहराती ज़ुल्फों में सावन दिखाई देता है। नज़र कोई मुझे जब छू कर गुजर जाए तो, नाचता मोर बरसता इश्क़ दिखाई देता है। कुछ ऐसा जो अब तक नहीं हुआ, तुम्हें देख होता कुछ बैसा दिखाई देता है। वक़्त से थमने की गुज़ारिश करता हूँ, वक़्त मुझे पानी सा बहता दिखाई देता है। रोकने पर भी रुकता नहीं वो एक लम्हा, ओझल होता पल मुद्दत सा दिखाई देता है। तुम्हारी शोख़ अदाएँ जादूगरी ख़ुदा की, ये जादू मुझको चहुँ-ओर दिखाई देता है। भाने लगी मुझे देह की सजावट। ख़्वाबों की होने लगी सुगबुगाहट। तुम्हारी शोख़ अदाएँ -------------------------------- लुभाने लगी मुझे देह की कसावट। भाने लगी मुझे देह की सजावट। बहाने करता हूँ तुमसे बात करने के, ख़्वाबों की होने लगी सुगबुगाहट। बहकाये से ख़याल हैं आजकल मेरे,