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कंदील जलती जाती है गम-ए-रात ढलती जाती है लफ़्ज़ों स

कंदील जलती जाती है गम-ए-रात  ढलती जाती है
लफ़्ज़ों से कलम से स्याही से एक आँह निकलती जाती है

एक मुट्ठी रेत तुम्हारी ख़ुशखैर यादों के मानिंद
हवा चलती जाती है रेत फिसलती जाती है

होंठो की ज़िद्दी तिश्नगी लरजते शोलों की बेचैनी
धुआं उड़ता जाता है सिगरेट सुलगती जाती है

क्या मयख़ाने क्या पैमानें क्या मय क्या मयकशी  
लबों से चढती जाती है आँखों से उतरती जाती है

-अमन वर्मा "अमन" दीवाली की ढेरों बधाइयाँ
कंदील जलती जाती है गम-ए-रात  ढलती जाती है
लफ़्ज़ों से कलम से स्याही से एक आँह निकलती जाती है

एक मुट्ठी रेत तुम्हारी ख़ुशखैर यादों के मानिंद
हवा चलती जाती है रेत फिसलती जाती है

होंठो की ज़िद्दी तिश्नगी लरजते शोलों की बेचैनी
धुआं उड़ता जाता है सिगरेट सुलगती जाती है

क्या मयख़ाने क्या पैमानें क्या मय क्या मयकशी  
लबों से चढती जाती है आँखों से उतरती जाती है

-अमन वर्मा "अमन" दीवाली की ढेरों बधाइयाँ
amanverma8284

Aman Verma

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