"एक स्त्री का सम्पूर्ण दुख "मां" शब्द को ना सुन पाना जो बहुत ही मार्मिक है" एक उम्र भर का दाग लग जाता है मां शब्द ना सुन पाने का आघात दिल पर कर जाता है फिर भी उस जख्म को सहती रहती है मुख से ना बोल पाती है बस अपने अंतर्मन में दुखो का सागर पीती रहती है , वो समाज का एक दयनीय शब्द जो "बांझ" के रूप में बोला जाता है, और एक स्त्री के अंतर्मन को अंदर तक चाकू की धार से छन्नी कर देता है, लेकिन कोई उसके दर्द को भी समझो जो अपनी ही कोख को सूनी देखकर बस निशब्द पड़ी रहती है, उसकी कोख का निर्जीव होने का जरिया केवल वो है क्या उसके हमसफर का भी उतना ही अधिकार होता है तो दोष केवल स्त्री को ही क्यों दिया जाता है , क्या उसका मन नहीं करता अपने आंचल में अपनी संतान को खिलाने का क्या उसका मन नहीं चाहेगा कि कोई उसे भी मां बोलो क्या उसका मन नहीं करता अपनी संतान को डाटने का , क्या वो एक स्त्री नहीं है ऐसा तो बिल्कुल भी नहीं है वो भी स्त्री का पूर्ण रूप लाई है बस एक गुहार वो लगाती है कोई "बांझ" ना कहे वो ये गुजारिश करती है, उसकी एक गुजारिश का इतना तो सम्मान करो उसके अंतर्मन को खुशी तो नहीं दे सकते लेकीन उसके चेहरे की मुस्कान जरुर बनो। ©Sita Kumari #बांझ #girl